क्या छत्तीसगढ़ में ईमानदार ACF–SDO की कमी है?
एक लाख की रिश्वत में रंगे हाथों पकड़े गए आर.पी. दुबे को रायपुर SDO बनाए जाने की हो रही तैयारी!
रायपुर | विशेष रिपोर्ट | भांडाफोड़ न्यूज़
छत्तीसगढ़ वन विभाग में एक बार फिर जवाबदेही और नैतिकता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। जिस अधिकारी को वर्ष 2018 में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने एक लाख रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया था, वही अधिकारी अब रायपुर वनमंडल के सबसे महत्वपूर्ण उपवनमंडलाधिकारी (SDO) पद के लिए दौड़ में सबसे आगे बताया जा रहा है।
मामला ACF आर.पी. दुबे का है, जो वर्तमान में रायपुर वनमंडल के नारंगी क्षेत्र में पदस्थ हैं। सूत्रों के अनुसार, आगामी 4 दिनों में SDO रायपुर का पद खाली हो रहा है, क्योंकि वर्तमान पदस्थ अधिकारी विश्वजीत मुखर्जी सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। इसी खाली हो रहे पद को पाने के लिए श्री दुबे जोर-शोर से प्रयासरत हैं — और चर्चा है कि वे अपर मुख्य सचिव श्रीमती ऋचा शर्मा के नाम का भी प्रभाव दिखाकर अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं।
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रिश्वतकांड की पूरी कहानी: जब एसीबी ने दबोचा था “छोटे दुबे” को
वर्ष 2018 की बात है — उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व, मैनपुर, जहां तत्कालीन SDO फॉरेस्ट आर.पी. दुबे (जिन्हें विभाग में “छोटे दुबे” कहा जाता है) को मनरेगा के तहत हुए एक 30 लाख के निर्माण कार्य का बिल पास कराने के एवज में 1 लाख रुपये रिश्वत लेते हुए ACB ने रंगे हाथों पकड़ा था।
मामले में शिकायतकर्ता थे ठेकेदार यशवंत साहू और दीपक प्रसाद, जिन्हें बिल भुगतान के बदले दुबे द्वारा पहले 10% कमीशन और फिर एक लाख रुपये की रिश्वत की मांग की गई थी।
एसीबी ने योजनाबद्ध तरीके से मैनपुर स्थित सरकारी आवास पर दबिश दी और दुबे को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा।
17.72 लाख रुपये की अंतिम बिल राशि के भुगतान को जानबूझकर रोका गया था।
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अब वही अधिकारी रायपुर के SDO पद की दौड़ में सबसे आगे!
यह सवाल उठना लाजिमी है — क्या छत्तीसगढ़ में ईमानदार ACF या SDO की इतनी भारी कमी हो गई है, कि एक रिश्वत के गंभीर मामले में फंसे और अब तक आरोपमुक्त न हुए अधिकारी को राजधानी जैसे महत्वपूर्ण वनमंडल में SDO बनाने की तैयारी हो रही है?
जबकि इसी रायपुर वृत्त में दर्जनों योग्य, लेकिन “ठलहा” बैठे SDO अधिकारी हैं —
कई लोग संलग्नाधिकारी बनकर,
तो कई डिप्टी एमडी, प्रोजेक्ट इंचार्ज, जैसे पदों पर बिना ठोस कार्य दायित्व के समय काट रहे हैं।
बावजूद इसके, सबसे ऊपर सिर्फ एक ही नाम — R.P. दुबे ! आखिर क्यों?
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शासन-प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
जब छत्तीसगढ़ सरकार ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ ACB और EOW जैसी संस्थाएं बनाई हैं, तब इन्हीं एजेंसियों के गिरफ्त में रहे व्यक्ति को दोबारा जिम्मेदारीपूर्ण पद सौंपना क्या सरकार की “भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता” की नीति का मज़ाक नहीं उड़ाता?
क्या ACB में दर्ज मामलों को विभागीय नियुक्तियों में कोई वज़न नहीं दिया जाता?
क्या भ्रष्टाचार के मामलों में “पकड़े गए” और “साबित हुए” का फर्क ही अब नई पात्रता बन गया है?
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जनहित में जवाब जरूरी है…
क्या शासन यह स्पष्ट करेगा कि ऐसे अफसरों को ही दोबारा प्रमुख पद क्यों दिए जा रहे हैं?
क्या ACB/EOW की कार्यवाही का कोई औचित्य बचा है?
और सबसे बड़ा सवाल — क्या इमानदार और योग्य ACF/SDO छत्तीसगढ़ के सिस्टम से बाहर होते जा रहे हैं?
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संपादकीय टिप्पणी:
यदि शासन में जवाबदेही और नैतिकता को कायम रखना है, तो ऐसे मामलों में केवल अनुभव या राजनीतिक पहुंच नहीं, बल्कि चरित्र और पूर्ववृत्ति को भी नियुक्ति के लिए मापदंड बनाना होगा। वरना “भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जीरो टॉलरेंस” सिर्फ़ एक जुमला बनकर रह जाएगा।