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- 🔍 विशेष रिपोर्ट | bhandafodnews.com
छत्तीसगढ़ जंगल सफारी घोटाला: IFS अधिकारी धम्मसील गणवीर के कार्यकाल में नियमों की उड़ती रही धज्जियां, “थीसिस” के नाम पर शासकीय राशि का बंदरबांट!
- 🔍 विशेष रिपोर्ट | bhandafodnews.com
- ◾ बिना स्वीकृति नियुक्त किए गए “विशेषज्ञ”,
- ◾ जंगल सफारी में फर्जी पदों पर पेमेंट,
- ◾ पीसीसीएफ ने मांगा जवाब,
- ◾ पहले भी रहे विवादों में IFS गणवीर
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रायपुर | bhandafodnews.com का रिपोर्ट
राजधानी नया रायपुर स्थित जंगल सफारी में एक बार फिर प्रशासनिक अनियमितता सामने आई है। इस बार सीधे प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीवन) को हस्तक्षेप कर संबंधित विषय विशेषज्ञों को कार्य से हटाने का आदेश देना पड़ा है। विभाग की छानबीन में यह साफ हुआ कि बिना कार्य की आवश्यकता और बिना किसी शासनादेश के जंगल सफारी में हजारों रुपये प्रति माह वेतन पर “विषय विशेषज्ञों” को संविदा पर नियुक्त किया गया था, जिससे न केवल विभागीय संसाधनों का दुरुपयोग हुआ, बल्कि वैध कर्मचारियों के वेतन और संसाधनों पर भी असर पड़ा।
🔴 जांच में खुलासा: 35,000 से 45,000 तक का मासिक भुगतान
जंगल सफारी में पिछले कई वर्षों से कार्यरत कुछ “बायोलॉजिस्ट” या “विषय विशेषज्ञों” को कोई वैधानिक आदेश या अनुमति प्राप्त नहीं थी। इसके बावजूद इन्हें ₹35,000 से ₹45,000 प्रतिमाह का भुगतान किया गया। पीसीसीएफ द्वारा 8 मई 2025 को इस मामले में रिपोर्ट तलब की गई थी, जिसके बाद अब 23 मई 2025 को सभी को तत्काल कार्य से पृथक करने का आदेश जारी कर दिया गया है।
🔍 पूर्ववर्ती अधिकारी IFS धम्मसील गणवीर की भूमिका संदिग्ध
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा नाम सामने आ रहा है—IFS अधिकारी श्री धम्मसील गणवीर, जो उस समय जंगल सफारी के संचालक एवं सह वनमण्डलाधिकारी के रूप में पदस्थ थे। यह पहला अवसर नहीं है जब उनके कार्यकाल में नियमों की अनदेखी और फर्जी नियुक्तियों की बात सामने आई है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, श्री गणवीर जहाँ-जहाँ पदस्थ रहे हैं, वहाँ ऐसे फर्जी और काल्पनिक पदों पर लोगों को रखकर शासकीय संसाधनों का दुरुपयोग किया गया।
📌 अन्य पदस्थापन और पुराने मामले
1. संचालक – कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, जगदलपुर
2. उपनिदेशक – इंद्रावती टाइगर रिजर्व, बीजापुर
3. DFO – केशकाल व दुर्ग
इन सभी स्थानों पर भी महाराष्ट्र से युवाओं को बुलाकर “थीसिस” व “मौखिक शोध” के नाम पर सरकारी रेस्ट हाउस में रुकवाया गया, शासकीय वाहनों में जंगल भ्रमण कराया गया, और उनके नाम पर काल्पनिक पदों का निर्माण कर उन्हें मासिक भुगतान तक किया गया। यह सब बिना शासन की अनुमति और नियमानुसार प्रक्रिया के हुआ।
⚠️ नियमों को ताक पर रखकर नियुक्तियाँ और भुगतान
ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी भी विषय विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए विभागीय स्वीकृति, फाइनेंस विभाग से बजट अनुमति और कार्य का औचित्य प्रमाणित होना आवश्यक होता है। परंतु इन सबको दरकिनार कर एक IFS अधिकारी के निजी प्रभाव व निर्णयों के चलते शासकीय धन का उपयोग मानव संसाधन शोध व पर्यावरणीय अध्ययन जैसे दिखावटी उद्देश्यों के लिए किया गया।
📋 पीसीसीएफ कार्यालय का स्पष्ट आदेश: तत्काल कार्यमुक्त करें
23 मई 2025 को पीसीसीएफ कार्यालय द्वारा जारी आदेश में संबंधित अधिकारियों से स्पष्ट कहा गया है कि बिना अनुमोदन के नियुक्त किए गए सभी विषय विशेषज्ञों को 15 दिनों के भीतर कार्य से पृथक किया जाए, तथा अब तक के सभी भुगतानों, आदेशों, स्वीकृति पत्रों, और कार्यों से संबंधित प्रतिवेदन तत्काल प्रस्तुत किया जाए।
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❓ अब सवाल यह है:
क्या जंगल सफारी जैसे संस्थान में बिना शासन की अनुमति के हजारों रुपये प्रतिमाह खर्च करना अधिकारियों की मनमानी नहीं है?
क्या केवल “थीसिस” व “शोध सहयोग” के नाम पर पदों का सृजन और मासिक भुगतान कानून का उल्लंघन नहीं है?
क्या विभागीय सचिव एवं मंत्री इन प्रकरणों में पूर्ववर्ती अधिकारियों की जवाबदेही तय करेंगे?
और सबसे बड़ा सवाल — क्या IFS गणवीर पर कभी कोई कार्रवाई होगी या वे हर बार बच निकलेंगे?
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✍️ निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ के वन विभाग में यह कोई पहली अनियमितता नहीं है, परंतु इस बार जिस स्तर पर शासकीय धन का उपयोग निजी संपर्कों के माध्यम से किया गया, वह न केवल सरकारी सेवा नियमों का उल्लंघन है, बल्कि एक ईमानदार व्यवस्था के चेहरे पर तमाचा भी है।
अब बारी छत्तीसगढ़ शासन की है — क्या शासन इसे “फाइलों में दबाकर” छोड़ देगा, या फिर ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई कर वन विभाग में पारदर्शिता की मिसाल पेश करेगा?
📌 नियमविरुद्ध नियुक्ति और शासकीय धन का अपव्यय
🟥 IFS धम्मसील गणवीर पर गंभीर आरोप
बिना स्वीकृत पद और बिना बजट स्वीकृति के जंगल सफारी, नया रायपुर में 7 से 10 लोगों को “बायोलॉजिस्ट” व “विषय विशेषज्ञ” के नाम पर नियुक्त किया गया।
इन नियुक्तियों के लिए ना शासन की अनुमति ली गई और ना ही कोई अधिकृत आदेश उपलब्ध है।
इन व्यक्तियों को ₹35,000 से ₹45,000 प्रतिमाह वेतन पिछले 2 वर्षों से दिया गया, जिससे लाखों-करोड़ों रुपये का शासकीय धन खर्च हुआ।
न इनसे कोई लिखित कार्य लिया गया, न कार्य मूल्यांकन किया गया, न ही इनकी उपस्थिति का कोई उपयोगिता प्रमाण है।
इनकी उपस्थिति से जंगल सफारी को न कोई फायदा, और न ही इनके बिना कोई नुकसान – यानी पूरी तरह से शून्य प्रभाव।
यह प्रकरण सरकार के धन का सीधा अपव्यय है, और इसके लिए तत्कालीन संचालक IFS धम्मसील गणवीर पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं।
शासन को चाहिए कि इस अनियमित नियुक्ति व भुगतान की संपूर्ण राशि की वसूली संबंधित अधिकारी से की जाए।