November 11, 2025 6:48 am

“छत्तीसगढ़ के जंगलों में ‘प्रशासनिक असमानता’ की आंधी: वेतन एक, बड़े वन वृत्तों पर भार दोगुन, बजट आधा – CCF का फूटा दर्द”

“छत्तीसगढ़ के जंगलों में ‘प्रशासनिक असमानता’ की आंधी: वेतन एक, बड़े वन वृत्तों पर भार दोगुन, बजट आधा – CCF का फूटा दर्द”

रायपुर।
छत्तीसगढ़ के वन विभाग में वर्षों से चली आ रही एक गंभीर विसंगति आखिरकार वरिष्ठ वन अधिकारियों की जुबान से बाहर आ गई है। वन संरचना में वन वृत्तों और वन मंडलों के बीच इतना असमान और असंतुलित ढांचा खड़ा कर दिया गया है कि अब इसने वित्तीय, प्रशासनिक और पर्यावरणीय मोर्चे पर संकट खड़ा कर दिया है।

राज्य के छह वन वृत्तों की बात करें तो बिलासपुर वन वृत्त में 9 मंडल, कांकेर व दुर्ग में 6-6, जबकि जगदलपुर जैसे अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र में केवल 4 वन मंडल कार्यरत हैं। बावजूद इसके, बजट वितरण और प्रशासनिक प्रबंधन में कोई व्यावहारिक संतुलन नहीं बनाया गया।

 

🔴 “बजट कम, कार्य दोगुना – अब हम क्या करें?” : CCF की विस्फोटक टिप्पणी

भांडाफोड़ न्यूज़ को एक वरिष्ठ CCF ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,

> “छोटे वन वृत्तों के मुकाबले हमारा वृत्त दो गुना से भी अधिक बड़ा है, लेकिन हमें बजट बेहद कम मिलता है। ऐसे में वन विकास योजनाओं, आधारभूत ढांचे और गश्त-पेट्रोलिंग जैसे कार्यों का समयबद्ध संचालन नामुमकिन हो गया है। नतीजा यह है कि वनों की स्थिति बद से बदतर हो रही है।”

उन्होंने आगे कहा,

> “हम एक ही समय और वेतनमान में दो वन वृत्तों के बराबर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उच्चाधिकारी कभी इस दर्द को सुनते ही नहीं। वे तो सिर्फ अपने पदोन्नति, सुविधा और नए पद सृजन में रुचि रखते हैं। वन वृत्तों की असमानता दूर करने की दिशा में आज तक किसी ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अब मेरी नौकरी के कुछ ही महीने बचे हैं, मैंने तो जैसे-तैसे निभा लिया, लेकिन जो नए IFS अधिकारी आएंगे, उनके लिए यह जिम्मेदारी और भी बोझिल होगी।”

🟩 जंगलों में सिर्फ पेड़ों की ही नहीं, प्रशासनिक संतुलन की भी जरूरत

छत्तीसगढ़ जैसे वन-प्रधान राज्य में जहां एक ओर जैव विविधता की रक्षा, वन्य जीव संरक्षण और जनजातीय समुदायों की आजीविका पर निर्भरता सर्वोपरि है, वहीं वन विभाग की आंतरिक संरचना ही जर्जर और असंतुलित हो चुकी है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े वन वृत्त में कार्यरत अधिकारियों को ना केवल मानव संसाधनों की कमी झेलनी पड़ रही है, बल्कि एक साथ कई मंडलों की योजनाओं, गश्त, निर्माण, कानूनी मामलों और ऑडिट रिपोर्टों को भी संभालना होता है।

 

🟡 प्रशासनिक और वित्तीय असंतुलन के दुष्परिणाम:

बड़े वृत्तों में प्रत्येक मंडल पर ध्यान देना असंभव होता जा रहा है।

बजट वितरण में असंतुलन के कारण कई योजनाएं या तो ठप हैं या अधूरी।

उच्च अधिकारी फ़ील्ड समस्याओं से अनभिज्ञ रहकर केवल फाइलों तक सीमित हो गए हैं।

वाइल्डलाइफ़ क्राइम, जंगल कटाई, और घोटालों की जांच समय पर नहीं हो पाती।

युवाओं में IFS सेवा को लेकर हतोत्साह बढ़ सकता है।

 

🔵 शासन से मांग – वन वृत्तों का पुनर्गठन आवश्यक

वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों सहित कई जागरूक पर्यावरणविदों और प्रशासनिक विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ शासन को चाहिए कि वन वृत्तों का पुनर्गठन कर नए वृत्त बनाएं, ताकि कार्य का समान वितरण हो सके। विशेषकर बिलासपुर व सरगुजा जैसे भारी मंडलों वाले वृत्तों को दो भागों में बांटकर नए CCF तैनात किए जाएं।

साथ ही यह भी जरूरी है कि डिजिटल ट्रैकिंग, सॉफ्टवेयर मॉनिटरिंग और मानव संसाधन आवंटन को वैज्ञानिक आधार पर सुधारा जाए।

🔚 निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ के जंगलों में सिर्फ हाथी या बाघ नहीं भटक रहे, बल्कि प्रशासनिक नीतियों का जंगलराज भी फैला है। अब वक्त आ गया है कि सरकार केवल योजनाओं की घोषणाएं करने के बजाय सिस्टम की रीढ़ – यानि वन विभाग के संरचनात्मक असंतुलन को सुधारने पर फोकस करे। वरना जंगल तो बचे रहेंगे – पर उन्हें संभालने वाला कोई नहीं रहेगा।

 

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