November 11, 2025 4:07 am

बड़े भाई ने दिखाई मिसाल: छोटे भाई को दी किडनी, बचाई जान।

बड़े भाई ने दिखाई मिसाल: छोटे भाई को दी किडनी, बचाई जान।

रिपोर्ट: ✍️एस. आलम, मुरादाबाद

मुरादाबाद के निवासी जसराम सिंह की ज़िंदगी उस वक्त संकट में पड़ गई, जब वह एंड स्टेज किडनी डिजीज (ESKD) से जूझते हुए किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत तक पहुंच गए। लेकिन इस कठिन वक्त में उनके बड़े भाई प्रेम शंकर ने न सिर्फ उन्हें सहारा दिया, बल्कि इंसानियत की एक मिसाल पेश करते हुए अपनी एक किडनी दान कर उन्हें जीवनदान दे दिया।

संभल जिले के हजरत नगर गढ़ी निवासी प्रेम शंकर ने जब अपने छोटे भाई की बिगड़ती हालत देखी, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के किडनी दान करने का निर्णय लिया। यह ट्रांसप्लांट मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल वैशाली में नेफ्रोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट विभाग की एसोसिएट डॉ. मनीषा दस्सी की देखरेख में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

प्रेस वार्ता में डॉ. मनीषा दस्सी ने बताया कि जसराम सिंह (उम्र 41 वर्ष) पिछले कुछ वर्षों से क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) से पीड़ित थे। फरवरी 2024 में उनकी हालत तेजी से बिगड़ने लगी, जिसके बाद उन्हें कमजोरी, थकान, वजन घटना और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं होने लगीं। प्रारंभ में दवाइयों से इलाज किया गया, लेकिन किडनी की कार्यक्षमता गिरती चली गई और उन्हें डायलिसिस पर निर्भर होना पड़ा।

डोनर तलाश में पूरे परिवार की जांच हुई, लेकिन जसराम की मां स्वयं किडनी रोग से ग्रसित थीं और पत्नी डायबिटिक थीं। एक साल से अधिक समय तक अन्य रिश्तेदारों की भी जांच की गई, पर कोई उपयुक्त डोनर नहीं मिला। इसी दौरान जसराम अपनी नौकरी भी गंवा बैठे और पूरा परिवार मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक तनाव से गुजरने लगा।

इसी कठिन समय में प्रेम शंकर ने आगे आकर न सिर्फ भाई के लिए किडनी डोनेट की, बल्कि परिवार को भी राहत की सांस दी। ऑपरेशन के दौरान प्रेम शंकर की सर्जरी लेप्रोस्कोपिक तकनीक से हुई, जिसमें छोटे चीरे लगते हैं और टांके खुद घुल जाते हैं, जबकि जसराम की सर्जरी ओपन पद्धति से की गई। डोनर को पांचवें दिन और रिसीपिएंट को सातवें दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। दोनों अब स्वस्थ हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं।

डॉ. मनीषा ने यह भी बताया कि जसराम के मामले में ट्रांसप्लांट बेहद चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उन्हें मल्टीपल क्रॉनिक समस्याएं थीं, जिनमें कुपोषण, हार्ट डिस्फंक्शन और लिवर की परेशानी शामिल थी। इसके बावजूद डॉक्टरों की मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम, निरंतर डायलिसिस और सावधानीपूर्वक मॉनिटरिंग से ऑपरेशन सफल रहा।

यह घटना न सिर्फ चिकित्सा विज्ञान की सफलता है, बल्कि भाईचारे और इंसानियत की प्रेरक कहानी भी है। प्रेम शंकर का यह निर्णय समाज को यह सिखाता है कि जब अपनों की ज़रूरत हो, तो रिश्ते सिर्फ नाम भर नहीं होते, बल्कि जीवनदायी भी बन सकते हैं।

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